Wednesday, December 2, 2009

शिव शक्ति स्वरूपा है नारी

-डॉ. अशोक कुमार मिश्र

संपूर्ण सृष्टि में नारी ही सबसे सुंदर क्यों है? उसे शक्ति स्वरूपा क्यों कहा जाता है? क्यों भारतीय संस्कृति में नारी को सर्वाधिक गौरवशाली स्थान दिया गया है? इन तमाम प्रश्नों के उत्तर शिव पुराण में निहित हैं। दरअसल, आत्माओं को मनुष्य रूपी चोला धारण सांसारिक सुख प्रदान करने केलिए सृष्टि की रचना का विधान किया गया। ब्रह्मा जी को सृष्टि की रचना करने का गुरुतर दायित्व दिया गया । उन्होंने बड़े मनोयोग से सृष्टि की रचना की लेकिन इस सृष्टि में वृद्धि का विधान नहीं था । इससे ब्रह्मा जी चिंतित होने लगे। उनकी चिंता थी कि जो एक बार रच गया वह आयु पूर्ण होने पर नष्ट हो जाएगा तो फिर सृष्टि का चक्र कैसे आगे बढ़ेगा। सृष्टि आगे न बढ़ पाने की चिंता ने ब्रह्मा जी को उद्वग्नि कर दिया । तब आकाशवाणी हुई और उन्हें ऐसी सृष्टि की रचना करने का संदेश मिला जिसका चक्र मैथुन के माध्यम से अनवरत चलता रहे ।
ब्रह्मा जी ने मैथुनी सृष्टि की रचना करने का संकल्प लिया लेकिन यहां पर भी उनके समक्ष एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई। प्रथम सृष्टि में नारी की रचना ही नहीं हुई थी । अत: ब्रह्मा जी मैथुनी सृष्टि करने में असमर्थ रहे। इस समस्या के निदान के लिए उन्होंने देवादिदेव महादेव को प्रसन्न करने की ठानी और कठोर तप किया । शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर अर्धनारीश्वर के रूप में प्रकट हुए । शिव की शक्ति स्वरूपा नारी का इस पृथ्वी पर अवतरण हुआ। अर्धनारीश्वर शिव ही नारी और पुरुष के दो रूप हैं जिनके माध्यम से सृष्टि की प्रक्रिया आगे बढ़ी । नारी को शिव ने अपनी शक्ति से प्रकट किया, इसलिए वह शक्ति स्वरूपा कहलाई । स्त्री और पुरुष शिव के ही दो प्रतीकात्मक रूप हंै और उनकी रागात्मक अभिव्यक्ति के रूप में सृष्टि का चक्र अनवरत अपनी गति से आगे बढ़ रहा है ।
नारी को रूप और सौंदर्य इसलिए मंडित किया गया ताकि सृष्टि के संचालन के लिए जिस रागात्मकता की आधारभूत आवश्यकता होती है, वह चिरंतन बनी रहे । उसे शक्ति स्वरूपा के रूप में स्थापित किया गया ताकि समाज में संतुलन बना रहे। वह सृष्टि में समर्थ है, इसीलिए सर्वाधिक सम्मानीय है। सृष्टि और समाज दोनों के कुशल संचालन और उत्तरोत्तर विकास के लिए जरूरी है कि दोनों के बीच रागात्मक संबंध बना रहे । इसी के लिए स्त्री-पुरुष संबंधों के विविध रूप स्थापित किए गए। पति-पत्नी का श्रेष्ठ संबंध भी इसी रूप की अभिव्यक्ति है । समाज के भौतिक विकास के लिए इन दोनों में तालमेल जरूरी है। इनका तालमेल बिगड़ते ही सामाजिक विसंगतियां पैदा होने लगती हैें।
प्रेम का पवित्र भाव समाज का मूल आधार है। प्रेमी-प्रेमिका का संबंध भी सृष्टि में रागात्मकता की वृद्धि करता है । प्रेम चिरस्थायी रहे, यह सृष्टि के लिए आवश्यक है । इसीलिए मनुष्य मात्र में परस्पर प्रेम भाव के विकास लिए प्रयास किए जाने चाहिए। ऐसा होने पर संपूर्ण सृष्टि में स्वत: शांति की स्थापना हो जाएगी ।

(चित्र गूगल सर्च से साभार)

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