Friday, August 14, 2009

गीता के उपदेशों को आत्मसात करके ही सांसारिक दुखों से मुक्ति

-डॉ. अशोक कुमार मिश्र
आज पूरे विश्व में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। जन्माष्टमी पर मंदिरों में भव्य झांकिया सजी हैं और जगह-जगह आयोजन हो रहे हैं। यह आयोजन उनके संदेशों की याद दिलाते हैं। संपूर्ण सृष्टि को प्रेम का संदेश देने वाले भगवान कृष्ण का जीवन दर्शन अद्भुत है। वास्तव में भगवान कृष्ण ने मानव कल्याण के लिए अवतार लिया था। उनके संदेश समस्त विश्व को श्रेष्ठ जीवन जीने की कला का मर्म बताते हैं। कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन परिजनों को सामने देखकर विचलित हुए तो भगवान कृष्ण ने उन्हें राह दिखाई। गीता के माध्यम से उन्होंने संपूर्ण मनुष्य जाति को जीवन का मर्म बताया। उनके उपदेश निर्भयतापूर्वक जीवन जीने का संदेश देते हैं। उन्होंने कहा आत्मा अमर है। वह न कभी मरती है और न जन्म लेती है। शरीर पंचतत्वों-अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश-से बना है और इन्हीं में विलीन हो जाता है। आत्मा शरीररूपी चोला बदलती रहती है। मनुष्य खाली हाथ संसार में आता है और खाली हाथ ही जाता है। मनुष्य का अपना कुछ है ही नहीं तो फिर खोने का डर क्यों ? इसलिए माया मोह में नहीं पडऩा चाहिए। माया मोह ही मनुष्य के सभी दुखों का मूल कारण है। ध्यान रखो, जो आज तुम्हारा है, वह कल किसी और का होगा। परिवर्तन प्रकृति का नियम हैं। डर, चिंता, दुख, और निराशा से मुक्ति पाने के लिए स्वयं को भगवान को समर्पित कर दो। मौजूदा दौर में भौतिकवादी चिंताओं के चलते अधिकांश मनुष्य दुख, निराशा, अवसाद, मायूसी और तनाव से घिरे रहते हैं। ऐसे में अगर मनुष्य अगर गीता के मर्म को अपने जीवन में आत्मसात कर ले तो वह इस संसार में अधिक सुखपूर्वक रह सकता है। वह अनेक किस्म के डर और चिंताओं से वह मुक्त हो सकता है। जीवन का पूर्ण आनंद ले सकता है।
(फोटो गूगल सर्च से साभार)