Friday, July 16, 2010

मेरठ के विल्वेश्वरनाथ मंदिर में पूजा करती थी मंदोदरी


-डॉ. अशोक प्रियरंजन
क्रांति नगरी के रूप में पूरे देश में विख्यात मेरठ शहर की एक और पहचान लंकाधिपति रावण की पटरानी मंदोदरी से भी जुड़ी है। मेरठ को त्रिपुर निर्माता दानवराज मय ने बसाया था। उसी के नाम पर इस शहर का नाम मयराष्ट्र पड़ा जो बाद में मेरठ हो गया। मय दानव की पुत्री थी मंदोदरी। मंदोदरी बड़ी रूपवती, धार्मिक और विदुषी महिला थी। वह शिवभक्त थी। मेरठ के सदर इलाके में स्थित प्राचीन विल्वेश्वरनाथ मंदिर में चिर कुमारी मंदोदरी पूजा किया करती थी।
हिंदू धर्म के इतिहास में रावण का नाम अगर बुराई के प्रतीक में लिया जाता है तो उसकी पत्नी मंदोदरी को नारी जाति को गौरव प्रदान करने वाली पतिव्रता महिला के रूप में याद किया जाता है। भारतवर्ष में पांच सती महिलाएं हुई हैं-अनसुइया, द्रोपदी, सुलक्षणा, सावित्री और मंदोदरी। इनमें मंदोदरी का नाम मेरठ से जुड़ा है। हिंदू धर्म के इतिहास के अनुसार मय दानव ने अप्सरा हेमा से विवाह किया थी। इनकी पुत्री मंदोदरी अत्यंत रूपवान थी। रामायण के बालकांड में गोस्वामी तुलसीदास ने उसकी सुंदरता का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है-मय तनुजा मंदोदरी नामा, परम सुंदरी नारी ललामा। अर्थात् मय दानव की मंदोदरी नामक कन्या परम सुंदरी स्त्रियों में शिरोमणि थी। रावण के पराक्रम से प्रभावित होकर मयासुर ने उससे मंदोदरी का विवाह किया था। मंदोदरी परम ज्ञानी महिला थी। वह समय-समय पर रावण को सलाह देकर उसे सत्य के मार्ग पर चलने केलिए कहती थी। सीता हरण केउपरांत मंदोदरी ने रावण से अनेक बार अनुरोध किया कि वह भगवान राम से बैर न ले। रावण हर बार उसकी बात हंसकर टाल देता था। यह भी कहा जाता है कि शतरंज के खेल का शुभारंभ भी मंदोदरी ने मनोरंजन के लिए किया था।